Saturday, 11 January 2020

हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए / रामनरेश त्रिपाठी

हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥

प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ही देश के कोने-कोने में गायी जाती हैं। लेकिन सच तो ये है कि माननीय त्रिपाठी जी ने इस प्रार्थना को छह पंक्तियों में लिखा था। जिसकी आगे की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :

गत हमारी आयु हो प्रभु! लोक के उपकार में
हाथ डालें हम कभी क्यों भूलकर अपकार में

अतुलनीय जिनके प्रताप का / रामनरेश त्रिपाठी

अतुलनीय जिनके प्रताप का,
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर।
 घूम घूम कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर।

 देख चुके है जिनका वैभव,
ये नभ के अनंत तारागण।
 अगणित बार सुन चुका है नभ,
जिनका विजय-घोष रण-गर्जन।

 शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,
जिनके दिव्य देश का मस्तक।
 गूँज रही हैं सकल दिशायें,
जिनके जय गीतों से अब तक।

 जिनकी महिमा का है अविरल,
साक्षी सत्य-रूप हिमगिरिवर।
 उतरा करते थे विमान-दल,
जिसके विसतृत वक्षस्थल पर।

 सागर निज छाती पर जिनके,
अगणित अर्णव-पोत उठाकर।
 पहुँचाया करता था प्रमुदित,
भूमंडल के सकल तटों पर।

 नदियाँ जिनकी यश-धारा-सी,
बहती है अब भी निशि-वासर।
 ढूँढो उनके चरण चिह्न भी,
पाओगे तुम इनके तट पर।

 सच्चा प्रेम वही है जिसकी
 तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर।
 त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।

 देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है,
अमल असीम त्याग से विलसित।
 आत्मा के विकास से जिसमें,
मनुष्यता होती है विकसित।

आगे बढ़े चलेंगे / रामनरेश त्रिपाठी

यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में 
 नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में ।
 यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में ।
 हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे । 
 वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे ।। 

 मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है ।
 सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है ।
 तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है ।
 हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे ।
 पीछे नहीं टलेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।

 अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में ।
 घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में ।
 धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में ।
 बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे ।
 जब तक पहुँच न लेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।

अन्वेषण / रामनरेश त्रिपाठी

मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में। 
 तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥
 तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था।
 मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥

 मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर तू।
 मैं बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में॥
 बनकर किसी के आँसू, मेरे लिए बहा तू।
 आँखे लगी थी मेरी, तब मान और धन में॥

 बाजे बजाबजा कर, मैं था तुझे रिझाता।
 तब तू लगा हुआ था, पतितों के संगठन में॥
 मैं था विरक्त तुझसे, जग की अनित्यता पर।
 उत्थान भर रहा था, तब तू किसी पतन में॥

 बेबस गिरे हुओं के, तू बीच में खड़ा था।
 मैं स्वर्ग देखता था, झुकता कहाँ चरन में॥
 तूने दिया अनेकों अवसर न मिल सका मैं।
 तू कर्म में मगन था, मैं व्यस्त था कथन में॥

 तेरा पता सिकंदर को, मैं समझ रहा था।
 पर तू बसा हुआ था, फरहाद कोहकन में॥
 क्रीसस की 'हाय' में था, करता विनोद तू ही।
 तू अंत में हंसा था, महमुद के रुदन में॥

 प्रहलाद जानता था, तेरा सही ठिकाना।
 तू ही मचल रहा था, मंसूर की रटन में॥
 आखिर चमक पड़ा तू गाँधी की हड्डियों में।
 मैं था तुझे समझता, सुहराब पीले तन में।

 कैसे तुझे मिलूँगा, जब भेद इस क़दर है।
 हैरान होके भगवन, आया हूँ मैं सरन में॥
 तू रूप कै किरन में सौंदर्य है सुमन में।
 तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में॥

 तू ज्ञान हिन्दुओं में, ईमान मुस्लिमों में।
 तू प्रेम क्रिश्चियन में, तू सत्य है सुजन में॥
 हे दीनबंधु ऐसी, प्रतिभा प्रदान कर तू।
 देखूँ तुझे दृगों में, मन में तथा वचन में॥

 कठिनाइयों दुखों का, इतिहास ही सुयश है।
 मुझको समर्थ कर तू, बस कष्ट के सहन में॥
 दुख में न हार मानूँ, सुख में तुझे न भूलूँ।
 ऐसा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में॥

हे प्रभु आनंददाता / रामनरेश त्रिपाठी

हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,

लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...

निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें,
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी न करें,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...

सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें,
दिव्या जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...

जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में,
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...

कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा,
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...

प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें,
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...

योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें,
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें,
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये..

वह देश कौन-सा है / रामनरेश त्रिपाठी

मन मोहनी प्रकृति की गोद में जो बसा है।
 सुख स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है।।

 जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है।
 जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है।।

 नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
 सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है।।

 जिसके बड़े रसीले फल कंद नाज मेवे।
 सब अंग में सजे हैं वह देश कौन-सा है।।

 जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे।
 दिन रात हँस रहे है वह देश कौन-सा है।।

 मैदान गिरि वनों में हरियालियाँ लहकती।
 आनंदमय जहाँ है वह देश कौन-सा है।।

 जिसके अनंत धन से धरती भरी पड़ी है।
 संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है।